
फिल्म “छावा” – एक ऐतिहासिक गाथा का पुनर्जागरण
बॉलीवुड में ऐतिहासिक फिल्मों का क्रेज बढ़ रहा है, और इसी कड़ी में फिल्म “छावा” आने वाली है, जो मराठा सम्राट छत्रपती संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित होगी। इस फिल्म में विक्की कौशल संभाजी महाराज की भूमिका निभा रहे हैं, और इसका निर्देशन लक्ष्मण उतेकर कर रहे हैं। यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि मराठा गौरव और बलिदान की कहानी होगी।
लेकिन, आखिर संभाजी महाराज कौन थे? उनके साथ इतिहास में जो कुछ भी हुआ, उसे जानना हर भारतीय के लिए जरूरी है।

छत्रपती संभाजी महाराज: मराठा साम्राज्य के अद्वितीय योद्धा
छत्रपती संभाजी महाराज (1657-1689), महान योद्धा शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र थे। वे बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान, वीर और रणनीतिकार थे। उन्हें संस्कृत, फ़ारसी, मराठी और कई अन्य भाषाओं का ज्ञान था। उनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य ने मुगलों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के खिलाफ कई सफल लड़ाइयाँ लड़ीं।
संभाजी महाराज की उपलब्धियाँ
- शिवाजी महाराज के बाद सत्ता संभालना (1681) – शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद कई षड्यंत्रों के बावजूद संभाजी महाराज ने सिंहासन संभाला।
- मुगलों से संघर्ष – उन्होंने औरंगज़ेब की सेना का डटकर मुकाबला किया और उसे कई बार करारी शिकस्त दी।
- अहमदनगर और बुरहानपुर पर आक्रमण – उनकी सबसे बड़ी जीतों में से एक थी, जब उन्होंने औरंगज़ेब के किले अहमदनगर और बुरहानपुर पर आक्रमण कर उन्हें लूट लिया।
- जलदुर्गों की रक्षा – उन्होंने मराठा नौसेना को और मजबूत किया और समुद्री व्यापार एवं सुरक्षा को बढ़ावा दिया।
- धार्मिक सहिष्णुता – वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे और प्रजा की भलाई के लिए कार्य करते थे।

संभाजी महाराज की गिरफ्तारी और अमानवीय यातनाएँ
संभाजी महाराज का जीवन केवल युद्धों और विजय की कहानी नहीं थी, बल्कि उनके जीवन का सबसे बड़ा अध्याय उनकी शहादत और बलिदान है।
कैसे हुआ संभाजी महाराज का धोखे से अपहरण?
1689 में, जब संभाजी महाराज अपने कुछ सैनिकों के साथ संगमेश्वर (महाराष्ट्र) में थे, तब मुगल सेना के एक विश्वासघाती सेनापति गिरधर कुलकर्णी ने उनका ठिकाना औरंगज़ेब को बता दिया। मुगलों ने अचानक हमला किया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
औरंगज़ेब का क्रूर प्रस्ताव
औरंगज़ेब ने संभाजी महाराज को इस्लाम कबूल करने का प्रस्ताव दिया। उसने कहा कि यदि वे इस्लाम अपना लेते हैं, तो उन्हें सम्मान और ऐश्वर्य दिया जाएगा। लेकिन संभाजी महाराज ने गर्व और साहस के साथ इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
अत्याचार और क्रूरता की हदें पार
संभाजी महाराज को औरंगज़ेब के आदेश पर कठोर और अमानवीय यातनाएँ दी गईं।
- उनकी आँखों में गर्म लोहे की सलाखें डाली गईं।
- उनके नाखून और अंगुलियाँ एक-एक कर काटी गईं।
- भूखा-प्यासा रखा गया, लेकिन उन्होंने कभी झुकना स्वीकार नहीं किया।
- उनकी जीभ काट दी गई ताकि वे विरोध न कर सकें।
- लगातार 40 दिनों तक उन्हें यातनाएँ दी गईं, फिर भी उन्होंने मराठा गौरव को नीचा नहीं होने दिया।
संभाजी महाराज की शहादत
11 मार्च 1689 को, औरंगज़ेब ने संभाजी महाराज को दो टुकड़ों में काटकर उनकी निर्मम हत्या करवा दी। उनका शरीर भी पूरी तरह टुकड़ों में काटकर नदी में फेंक दिया गया, ताकि कोई उनका अंतिम संस्कार न कर सके। लेकिन उनकी शहादत व्यर्थ नहीं गई।
संभाजी महाराज का बलिदान और मराठा साम्राज्य की जीत
संभाजी महाराज की शहादत के बाद मराठा सैनिकों में जबरदस्त आक्रोश फैल गया। उनके बलिदान से प्रेरित होकर मराठाओं ने औरंगज़ेब के खिलाफ ज़बरदस्त संघर्ष किया। इसका परिणाम यह हुआ कि औरंगज़ेब को कभी भी मराठा साम्राज्य को पूरी तरह जीतने में सफलता नहीं मिली।
संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, उनके छोटे भाई राजाराम महाराज और फिर उनकी पत्नी महारानी ताराबाई ने मराठा साम्राज्य को बचाने का नेतृत्व किया। अंततः मराठाओं ने मुगलों को पराजित कर दिया और हिंदवी स्वराज्य को बनाए रखा।
फिल्म “छावा” से उम्मीदें
अब जब फिल्म “छावा” आने वाली है, तो इस वीर गाथा को नए सिरे से प्रस्तुत किया जाएगा। उम्मीद है कि यह फिल्म संभाजी महाराज की वीरता और बलिदान को सच्चाई और सम्मान के साथ दिखाएगी।
निष्कर्ष:
संभाजी महाराज भारतीय इतिहास के सबसे वीर और स्वाभिमानी योद्धाओं में से एक थे। उनकी कहानी केवल मराठा गौरव की ही नहीं बल्कि बलिदान, निष्ठा और अडिग संकल्प की भी मिसाल है।
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