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दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का असर: स्मॉग इकोनॉमी की बढ़ती भूमिका

दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत इन दिनों वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर हैं। जहरीली हवा में सांस लेना मुश्किल हो रहा है, और इसका सीधा असर आम जनता के स्वास्थ्य और जीवनशैली पर पड़ रहा है। इस संकट ने एक नई अर्थव्यवस्था को जन्म दिया है जिसे ‘स्मॉग इकोनॉमी’ कहा जा सकता है।

वायु प्रदूषण का दायरा और प्रभाव

सर्दियों के मौसम में प्रदूषण के स्तर में भारी वृद्धि होती है। प्रमुख कारणों में पराली जलाना, वाहनों से निकलने वाला धुआं, और निर्माण कार्य शामिल हैं। इन कारणों से उत्पन्न स्मॉग से आंखों में जलन, गले में खराश, सांस की समस्याएं और एलर्जी जैसी बीमारियां आम हो गई हैं।

स्मॉग इकोनॉमी का विस्तार

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए लोग कई तरह के उत्पाद और सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं। इसके चलते निम्नलिखित क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां तेज़ी से बढ़ रही हैं:

  1. स्वास्थ्य सेवाएं और दवाएं
    • सांस संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए दवाओं की मांग में तेजी आई है।
    • निजी अस्पताल और क्लीनिक फेफड़ों की बीमारियों और एलर्जी के इलाज में व्यस्त हैं।
    • 2024 तक अस्थमा और एलर्जी की दवाओं की बिक्री में 19% से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
  2. एयर प्यूरीफायर और मास्क
    • शहरी क्षेत्रों में एयर प्यूरीफायर का उपयोग आम हो गया है।
    • रिसर्च के अनुसार, भारत में एयर प्यूरीफायर बाजार सालाना 15% की दर से बढ़ रहा है।
    • N95 मास्क और अन्य हाई-क्वालिटी प्रोटेक्टिव मास्क की बिक्री में उछाल आया है।
  3. पर्यटन और रियल एस्टेट
    • प्रदूषण से बचने के लिए लोग पहाड़ी इलाकों जैसे मसूरी, नैनीताल, और कसौली में शरण ले रहे हैं।
    • अमीर वर्ग हिल स्टेशनों पर विला और ‘समर होम्स’ खरीदने में निवेश कर रहा है।
    • पर्यटन उद्योग में विशेषकर दिवाली के बाद यात्राओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

प्रमुख आंकड़े और रुझान

वायु प्रदूषण से निपटने की पहल

हालांकि स्मॉग इकोनॉमी ने कुछ उद्योगों को बढ़ावा दिया है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है।

स्मॉग इकोनॉमी ने वायु प्रदूषण से जुड़े उत्पादों और सेवाओं की मांग को तेज किया है। हालांकि, यह इकोनॉमी तत्काल राहत दे सकती है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए हरित ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण की नीतियां अनिवार्य हैं।

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