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‘One Nation One Election’ विधेयक: लोकसभा में बड़े बदलाव की तैयारी

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों को लेकर बड़ा कदम
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘one nation one election’ देश के चुनावी ढांचे में बड़ा बदलाव लाने की तैयारी है। संसद के शीतकालीन सत्र में इस पर चर्चा की शुरुआत सोमवार को होने जा रही है। दो अहम विधेयक लोकसभा में पेश किए जाएंगे, जिनसे देश की चुनावी प्रक्रिया और संविधान में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

विधेयकों का महत्व और उद्देश्य:

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दी है। इस पहल का उद्देश्य चुनावी खर्च में कटौती करना और प्रशासनिक दक्षता में सुधार करना है। इस विधेयक में शामिल मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  1. अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन:
    लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल का रहेगा और इसे एक साथ सिंक्रोनाइज किया जाएगा। यदि किसी कारण से कार्यकाल पूरा होने से पहले लोकसभा या विधानसभा भंग हो जाती है, तो मध्यावधि चुनाव पूरे चुनाव कार्यक्रम के साथ सिंक्रोनाइज होंगे।
  2. अनुच्छेद 327 के तहत निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन:
    लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन होगा, ताकि चुनाव प्रक्रिया को सरल और व्यवस्थित बनाया जा सके।
  3. अनुच्छेद 82ए का प्रावधान:
    इस नए अनुच्छेद के तहत, राष्ट्रपति को लोकसभा के आम चुनाव के बाद पहली बैठक की तारीख अधिसूचित करने का अधिकार होगा। साथ ही, सभी विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के साथ समाप्त होगा।

चुनाव आयोग की भूमिका में बदलाव:

one nation one election

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ योजना के तहत चुनाव आयोग की भूमिका को पुनः परिभाषित किया जाएगा। चुनाव आयोग को लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने के अधिकार और जिम्मेदारियां सौंपी जाएंगी। इसके तहत:

स्थानीय निकाय चुनावों का क्या?

केंद्रीय सरकार ने अभी तक स्थानीय निकाय चुनावों को ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के दायरे से बाहर रखा है। मंत्रिमंडल ने इस पर आगे निर्णय लेने से फिलहाल परहेज किया है।

संभावित प्रभाव और चुनौतियां:

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से देश में बार-बार होने वाले चुनावों पर लगाम लगेगी, जिससे सरकारी संसाधनों और समय की बचत होगी। हालांकि, विपक्षी दल इस कदम को लोकतंत्र की बहुलता पर खतरा बता रहे हैं। इसके अलावा, विभिन्न राज्यों में राजनीतिक असमानताओं और व्यावहारिक दिक्कतों को भी इस योजना के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है।

निष्कर्ष:

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ देश के चुनावी ढांचे में एक ऐतिहासिक बदलाव लाने का प्रयास है। इसके लागू होने से प्रशासनिक लागत कम होने और चुनावी प्रक्रिया में स्थिरता आने की उम्मीद है। हालांकि, इस पहल की सफलता संसद और समाज दोनों की स्वीकृति पर निर्भर करेगी।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

प्रश्न 1: ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का क्या मतलब है?
उत्तर: ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मतलब है कि लोकसभा (संसद) और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएं। इसका उद्देश्य चुनावी खर्च और बार-बार होने वाले चुनावों से बचना है।

प्रश्न 2: इस योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इसका मुख्य उद्देश्य:

प्रश्न 3: इस योजना को लागू करने के लिए क्या बदलाव किए जाएंगे?
उत्तर:

प्रश्न 4: क्या यह योजना स्थानीय निकाय चुनावों पर भी लागू होगी?
उत्तर: फिलहाल यह योजना केवल लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए लागू होगी। स्थानीय निकाय चुनाव इसके दायरे से बाहर हैं।

प्रश्न 5: अगर किसी विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले चुनाव की जरूरत पड़े, तो क्या होगा?
उत्तर:
अगर किसी विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले भंग हो जाता है, तो वहां मध्यावधि चुनाव पूरे चुनाव कार्यक्रम के साथ सिंक्रोनाइज किए जाएंगे।

प्रश्न 6: इस योजना के क्या फायदे हैं?
उत्तर:

प्रश्न 7: इस योजना की सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
उत्तर:

प्रश्न 8: क्या अन्य देशों में यह प्रणाली लागू है?
उत्तर: हां, कई देशों जैसे कि दक्षिण अफ्रीका और स्वीडन में एक साथ चुनाव की प्रणाली है। हालांकि, भारत की स्थिति अधिक जटिल है क्योंकि यहां राज्य और केंद्र दोनों के लिए अलग-अलग राजनीतिक व्यवस्थाएं हैं।

प्रश्न 9: यह योजना कब तक लागू हो सकती है?
उत्तर: इसे लागू करने के लिए संविधान संशोधन और संसद एवं राज्यों की सहमति आवश्यक है। इसकी समय-सीमा फिलहाल तय नहीं की गई है।

प्रश्न 10: इस योजना से लोकतंत्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
समर्थकों का मानना है कि यह लोकतंत्र को मजबूत करेगा और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करेगा। वहीं, आलोचकों का कहना है कि यह क्षेत्रीय दलों की भूमिका को कमजोर कर सकता है।

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