
भारत के अगले चीफ जस्टिस होंगे जस्टिस संजीव खन्ना, जानिए उनका करियर और चुनौतियाँ
भारत के अगले चीफ जस्टिस होंगे जस्टिस संजीव खन्ना, जानिए उनका करियर और चुनौतियाँ
भारत के मौजूदा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 10 नवंबर 2024 को अपने पद से रिटायर होने से पहले अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस संजीव खन्ना का नाम सुझाया है। केंद्र सरकार को जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह नाम भेजा है, जिसे मंजूरी मिलते ही जस्टिस खन्ना भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। हालांकि, उनका कार्यकाल मात्र 6 महीने का रहेगा और वह 13 मई 2025 को रिटायर हो जाएंगे।
जस्टिस संजीव खन्ना का कानूनी करियर 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में शामिल होने से शुरू हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक प्रैक्टिस तीस हजारी कोर्ट में की और बाद में दिल्ली हाईकोर्ट और ट्रिब्यूनल में अपनी सेवाएं दीं। उनका लंबा अनुभव आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में रहा है। इसके बाद उन्हें 2004 में दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए स्थायी वकील (सिविल) नियुक्त किया गया।
जस्टिस खन्ना का सफर चुनौतियों से भरा रहा है। उनकी सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति के समय 32 अन्य जजों को दरकिनार किए जाने पर विवाद भी हुआ था, जिसने कॉलेजियम प्रणाली की पारदर्शिता पर बहस छेड़ी थी। इसके अलावा, अगस्त 2024 में समलैंगिक विवाह के मामले की सुनवाई से अलग होने के कारण एक नई पीठ के गठन की आवश्यकता पड़ी। इससे उनके व्यक्तिगत मान्यताओं और न्यायिक जिम्मेदारियों के बीच जटिलता सामने आई।
उनके कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसले हुए हैं। इनमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले पर सहमति जताना और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत के चुनाव आयोग मामले में 100% वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका को खारिज करना प्रमुख हैं। उनकी अब तक की यात्रा में लगभग 275 बेंचों में भागीदारी और 65 महत्वपूर्ण निर्णय शामिल हैं, जो उनके समर्पण और कानूनी योग्यता को दर्शाते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि जस्टिस खन्ना का कार्यकाल भले ही छोटा हो, लेकिन उनके निर्णयों का प्रभाव लम्बे समय तक न्यायिक व्यवस्था पर रहेगा। उनके अनुभव और संवैधानिक ज्ञान से न्यायपालिका को मजबूत दिशा मिलने की उम्मीद है।
जस्टिस संजीव खन्ना का करियर बेहद प्रतिष्ठित और चुनौतियों से भरा रहा है। 6 महीने के इस छोटे कार्यकाल में भी उनसे कई महत्वपूर्ण फैसलों की उम्मीद की जा रही है, जो भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में अहम मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।