
भ्रष्टाचार की बेड़ियाँ, देश को जकड़ती हैं,
सपनों को तोड़ती, उम्मीदों को मसलती हैं।
ईमान के झरोखे, धुंधले होने लगे,
सच्चाई की राहें, कुहासों में खोने लगे।
कितनी आशाएं, हर रोज बिखरती हैं,
छोटे-छोटे सपने, जमीं पर उतरती हैं।
जो सच्चाई के दीवाने हुआ करते थे,
अब वे भी झूठ के बहाने हुआ करते हैं।
दफ्तरों में कागज की सजी फाइलें,
आँखों में सवाल, होंठों पर शिकन की लकीरें।
हर मोड़ पर कीमत लगती ईमान की,
फिर कैसे उठेगी आवाज इंसान की?
यहां सब कुछ बिकता है, कोई ईमान, कोई वफा,
हाथ मिलाकर दोस्ती की, पीठ में छुरा।
क्या यही है वह सपना, हमने देखा था?
क्या यही है वह भारत, जो सोचा था?
परिवर्तन की पुकार
परिवर्तन की आंधी, अब उठानी होगी,
सच्चाई की मशाल, फिर से जलानी होगी।
कदम से कदम मिलाकर चलना होगा,
इस भ्रष्टाचार का अंत करना होगा।
ईमान का दीपक जलाएँ हर घर में,
इंसानियत की लहर फैलाएँ हर सर में।
भ्रष्टाचार की बेड़ियों को तोड़ेंगे हम,
नया भारत बनाएंगे, यही सोचेंगे हम।
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