डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय इतिहास में एक ऐसा नाम हैं, जो न केवल संविधान निर्माता के रूप में जाने जाते हैं बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के प्रतीक भी हैं। उनके जीवनकाल में कांग्रेस के साथ उनके संबंध हमेशा जटिल और मतभेदपूर्ण रहे। इस लेख में हम ऐतिहासिक घटनाओं, राजनीतिक संदर्भों और वर्तमान विवादों के माध्यम से यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्या कांग्रेस ने डॉ. अंबेडकर को सही मायनों में न्याय दिया।

डॉ. अंबेडकर और कांग्रेस: प्रारंभिक मतभेद
डॉ. अंबेडकर का राजनीतिक और सामाजिक सफर शुरू से ही कांग्रेस के साथ टकरावपूर्ण रहा।
- पूना पैक्ट (1932):
डॉ. अंबेडकर ने दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की वकालत की, जिसे गांधीजी ने तीव्र विरोध किया। पूना पैक्ट के तहत समझौता हुआ, जिसमें दलितों के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया। हालांकि, डॉ. अंबेडकर इसे दलितों के अधिकारों के साथ समझौता मानते थे। - कांग्रेस का रवैया:
कांग्रेस ने अक्सर दलित अधिकारों के मुद्दे पर व्यापक समर्थन देने के बजाय अपने राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दी। डॉ. अंबेडकर ने कांग्रेस को दलितों के प्रति केवल सहानुभूतिपूर्ण, लेकिन वास्तविक न्याय के लिए प्रतिबद्ध न होने का आरोप लगाया।
स्वतंत्रता के बाद: अंबेडकर की राजनीतिक यात्रा
- संविधान सभा में योगदान:
डॉ. अंबेडकर को संविधान सभा की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया, जो उनके बौद्धिक कद और संविधान निर्माण में उनके योगदान को दर्शाता है। हालांकि, कांग्रेस के साथ उनके वैचारिक मतभेद जारी रहे। - राजनीतिक उपेक्षा:
1952 और 1954 के चुनावों में डॉ. अंबेडकर को कांग्रेस का समर्थन नहीं मिला, जिससे उनकी हार हुई। यह घटना उनके और कांग्रेस के बीच गहराते मतभेदों का प्रतीक बन गई। - भारत रत्न की देरी:
बाबा साहेब को 1990 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो उनकी मृत्यु के 34 साल बाद हुआ। इसे उनकी विरासत को देर से पहचानने के रूप में देखा गया।
वर्तमान विवाद: अंबेडकर का नाम और राजनीति
हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र में गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान ने अंबेडकर के नाम पर राजनीति को फिर चर्चा में ला दिया।
- कांग्रेस का रुख:
कांग्रेस ने इस बयान को दलितों और आदिवासियों की भावनाओं का अपमान बताया और गृह मंत्री से माफी की मांग की। - भाजपा का तर्क:
भाजपा ने कांग्रेस पर डॉ. अंबेडकर की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि वर्तमान सरकार ने अंबेडकर की विरासत को संरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं, जैसे पंचतीर्थ का विकास।
क्या कांग्रेस ने अंबेडकर को न्याय दिया?
- जीवनकाल में उपेक्षा:
डॉ. अंबेडकर के साथ कांग्रेस का व्यवहार उनके जीवनकाल में उपेक्षा भरा रहा। उनके विचारों को अमल में लाने की बजाय कांग्रेस ने उन्हें राजनीतिक स्तर पर हाशिए पर रखा। - विरासत की राजनीति:
वर्तमान में कांग्रेस और भाजपा, दोनों अंबेडकर के नाम का इस्तेमाल अपनी राजनीति को मजबूत करने के लिए करती हैं। - सामाजिक न्याय की अनदेखी:
डॉ. अंबेडकर का सपना केवल आरक्षण तक सीमित नहीं था। उनके विचारों में सामाजिक और आर्थिक समानता का महत्व था, जिसे लागू करने में कांग्रेस विफल रही।
निष्कर्ष: अंबेडकर की विरासत का सम्मान कैसे हो?
कांग्रेस ने डॉ. अंबेडकर को संविधान सभा में एक महत्वपूर्ण भूमिका देकर उनकी बौद्धिकता का सम्मान किया, लेकिन उनके जीवनकाल में उनकी राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि को पूरी तरह से समर्थन नहीं दिया। आधुनिक राजनीति में उनका नाम केवल चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
समाज को आवश्यकता है कि डॉ. अंबेडकर के विचारों को केवल स्मारकों तक सीमित न रखा जाए, बल्कि उनके आदर्शों को नीति निर्माण और सामाजिक बदलाव में लागू किया जाए।
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