शहीद भगत सिंह का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उन महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है, जिन्होंने अपने देश के लिए प्राणों की आहुति दी। लेकिन हाल ही में पाकिस्तान की एक अदालत में उन्हें “आतंकवादी” कहा गया, जिससे भारतीयों के बीच आक्रोश की लहर दौड़ गई। आइए, जानते हैं इस घटनाक्रम का पूरा सच और इसके पीछे का कारण।

–अदालत का फैसला और उसका संदर्भ
पाकिस्तान के लाहौर हाई कोर्ट में शहीद भगत सिंह के मामले से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई हो रही थी। इस याचिका में शहीद भगत सिंह को निर्दोष करार देने और उनकी याद में एक स्मारक स्थापित करने की मांग की गई थी। लेकिन अदालत ने उन्हें “आतंकवादी” कहकर संबोधित किया, जो कि भारत और पाकिस्तान के ऐतिहासिक संबंधों और स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के प्रति एक अपमानजनक टिप्पणी मानी गई।
–ऐतिहासिक संदर्भ में शहीद भगत सिंह का संघर्ष
शहीद भगत सिंह ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया और इसके लिए उन्हें फांसी की सजा भी मिली। उन्होंने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की थी, जो कि अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ एक प्रतिक्रिया के तौर पर थी। शहीद भगत सिंह ने हमेशा भारतीय स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने का रास्ता अपनाया और इसे आतंकवाद नहीं, बल्कि क्रांतिकारी गतिविधि माना गया।
–आतंकवादी शब्द का उपयोग क्यों?
दरअसल, अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने वाले किसी भी व्यक्ति को ब्रिटिश कानून के तहत “आतंकवादी” करार दिया जाता था। इस सोच का प्रभाव आज भी कुछ सरकारी दस्तावेजों और कानूनी मानकों में देखा जाता है। पाकिस्तान की अदालत में इस शब्द का उपयोग करने के पीछे भी शायद यही सोच हो सकती है। हालांकि, यह एक ऐतिहासिक भूल भी मानी जा सकती है, क्योंकि शहीद भगत सिंह का संघर्ष एक स्वतंत्रता सेनानी का संघर्ष था, न कि आतंकवाद का।
–भारत में प्रतिक्रिया
पाकिस्तान की अदालत द्वारा शहीद भगत सिंह को आतंकवादी कहे जाने पर भारत में व्यापक प्रतिक्रिया हुई। कई भारतीय नेताओं और संगठनों ने इस फैसले का विरोध किया और इसे शहीद भगत सिंह जैसे महापुरुष का अपमान बताया। भारतीय लोगों का मानना है कि यह फैसला न केवल इतिहास को गलत रूप में पेश कर रहा है, बल्कि दोनों देशों के बीच अनावश्यक तनाव भी पैदा कर सकता है।
शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नायक थे, जिन्होंने अपने साहस, त्याग और बलिदान से देश को स्वतंत्रता की दिशा में एक नई प्रेरणा दी। पाकिस्तान की अदालत का यह निर्णय ऐतिहासिक तथ्यों को अनदेखा कर, एक संकीर्ण दृष्टिकोण को उजागर करता है।
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