व्यस्त पति की व्यस्त पत्नी..। सुबह से शाम तक की व्यस्तता — । एक-दूसरे को देखने का समय ही नहीं मिलता। काम की व्यस्तता और तनावों के कारण दाम्पत्य संबंधों में आई दरारें, अनचाहे बढ़ती दूरियां, दो दिलों के बीच उगती कंटीली झाड़ियां– । कहीं यह आपका भी तो सच नहीं ?
“काम! काम !! काम!!! अगर तुम्हें अपने काम से इतना ही लगाव था, तो फिर “शादी क्यों की? और सब कामों के लिए तुम्हारे पास समय है, सिर्फ मेरे लिए ही तुम्हारे पास समय नहीं । तुम्हें इतनी भी फुर्सत नहीं कि मेरी ओर आंख उठा कर देख भी सको। सुबह से शाम और शाम से रात हो जाती है। मैं तुम्हारी सूरत देखने के लिए तरस जाती हूं। बच्चे तुमसे बातें करने और तुम्हारा प्यार पाने की उम्मीद लगाए रोज सो जाते हैं । न तुम्हें बच्चों से कोई लगाव है, न मेरी कोई परवाह, ये अजनबियों की तरह साथ रहना भी कोई जिंदगी है। आखिर मेरी भी तो कोई इच्छा है. — लेकिन एक तुम हो कि । ”
यह किसी हिंदी फिल्म का कोई संवाद नहीं, बल्कि पति की व्यस्तता पर पत्नी के आक्रोश और उलाहने भरी खीझ है, जो हमें अकसर अनेक मध्यवर्गीय परिवारों में सुनने को मिल सकती है। जहां पति की व्यस्तता का रोना पत्नी रोती है और बदले में उसे सहानुभूति के स्थान पर तीखी प्रताड़ना सुनने को मिलती है।

“कान खोल कर सुन लो कान्ता ! यह रोज-रोज की हाय-हाय, चिक-चिक मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। अगर मैं रात-दिन काम करके कुछ कमा कर लाता हूं, तो किसके लिए? तुम्हीं लोगों के लिए यह मत भूलो कि आज सोसायटी में हमारी जो इज्जत है, इसी रुपए की वजह से है और यह रुपया मेहनत से मिलता है। ये सारी सुख-सुविधाएं — – यह स्टैन्डर्ड ऑफ लिविंग – होटल, क्लब, पार्टियां, इसीलिए तुम्हें सुलभ हैं क्योंकि में रात-दिन एक करता हूं। सुबह-सुबह मेरा मूड ऑफ मत किया करो वरना— ।”
आधुनिक प्रगतिशील जीवन-यापन की चाह लिए पति-पत्नी आजकल इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें एक-दूसरे के पास बैठने तक का समय ही नहीं मिलता। यदि पत्नी कामकाजी नहीं है, तो उसे अपने पति की इस प्रकार की व्यस्तता फूटी आंख पसंद नहीं आती। समय-समय पर वह न केवल पति की इस व्यस्तता का रोना रोती है, बल्कि पति के गौर न करने पर अपने भाग्य को कोसती है। जबकि सच्चाई यह है कि पति-पत्नी की इस प्रकार की अत्यधिक व्यस्तता कैरियर के प्रति बढ़ता नशा और आर्थिक संपन्नता की चाह दाम्पत्य संबंधों में दूरियां बढ़ाती है, पति-पत्नी में परस्पर कटुता, वैमनस्य, क्रोध, कुंठा और खीझ पैदा करती है। दाम्पत्य संबंधों में दारार वाला यह व्यवहार आज के परिवारों की सबसे बड़ी समस्या बनता जा रहा है।
यदि आप किसी ऐसे व्यवसायी, व्यापारी, पत्रकार, संपादक, सामाजिक कार्यकर्ता अथवा अधिकारी की पत्नी हैं, तो निश्चय ही समाज में आपका विशिष्ट स्थान है,
स्वाभाविक है कि इस स्थान को पाने अथवा इस स्थान पर पहुंचने के लिए पति को कुछ अतिरिक्त मेहनत करनी ही पड़ेगी, अतिरिक्त समय भी देना पड़ेगा, कुछ अतिरिक्त त्याग भी करने पड़ेंगे, इसलिए पति के ऐसे किसी भी काम की व्यस्तता को दोष न मानते हुए गुण ही मानें। उनकी व्यस्तता को कोसने के स्थान पर उन्हें सहयोग दें। यदि पति का कारोबार नया है, बड़ा है या वे किसी विभाग के स्वतंत्र प्रभारी हैं, जिम्मेदार अधिकारी हैं, निरीक्षणकर्ता हैं अथवा प्रबंधक हैं। तो यह स्वाभाकि ही है कि उन्हें अतिरिक्त समय देना ही पड़ता है। वैसे भी लोग अपनी पोजीशन’ और अपनी अच्छी छवि बनाने के लिए मेहनत करते हैं। मेहनत के इस कार्य में उन्हें न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। इस पर यदि आप पत्नी के रूप में उनकी व्यस्तता पर प्रश्न चिह्न लगाती हैं, तो निश्चय ही उनका मूड खराब होगा और आपके आक्रोश से वे झुंझला सकते हैं। अतः इस प्रकार की व्यस्तता में पति का विश्वास जीतें । पति की व्यस्तता को सकारात्मक भाव से लें । व्यस्तता के लिए उन पर ताने न कसें । पति की भूमिका को समझें, उन्हें प्रेरित करें। यदि आप पढ़ी लिखी हैं, तो पति के काम में सहयोग दें। पत्रों का उत्तर, लेखा कार्य, बैंकिंग कार्य आप स्वयं करें। इससे आपको पति का साहचर्य भी मिलेगा और आत्मीयता भी ।
यदि आप स्वयं कामकाजी हैं, तो पति के कार्य में उनकी कार्य योजना, विचारों, निर्णयों में उसकी सहायता कर सकती हैं। घर के कामों को कुछ इस तरह से नियोजित करें कि दोनों की ही कार्य क्षमता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। घर में आए मेहमानों का स्वागत, विवाह-बरात आदि में जाना, सामाजिक संबंधों का निर्वाह करना, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, गृहकार्य, हिसाब-किताब, बिजली-पानी, टेलीफोन आदि के बिलों का भुगतान आदि ऐसे कार्य हैं, जिन्हें आप स्वयं कर सकती हैं, बच्चों से करा सकती हैं। इन सबसे जहां पति की व्यस्तता कम होगी, वहीं आप इस बचे हुए समय का सदुपयोग भी कर सकेंगी।
आशय यह है कि दाम्पत्य संबंधों में कहीं भी रिक्तता अथवा शून्यता न आने दें। इसके लिए पूरा-पूरा समय निकालें। पति-पत्नी बच्चों की समस्याओं पर परस्पर विचार-विमर्श करें। उनके भविष्य के बारे में सोचें। उनकी समस्याओं पर सकारात्मक निर्णय लें। केवल अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा अथवा अपने बारे में ही न सोचें। पारिवारिक समस्याओं के समाधान में दिया गया समय आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा और आप जीवन के मूल उद्देश्यों को पा सकेंगे।
केवल पैसा कमाना ही आपका उद्देश्य नहीं होना चाहिए। वास्तव में पैसा कमाने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है उस पैसे का उपयोग—यदि आप रात-दिन मेहनत करके
पैसा कमाते हैं और उसका सही उपयोग नहीं होता, तो ऐसे पैसे की क्या उपयोगिता है?
पति को अनुचित कमाई के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरित, प्रोत्साहित न करें। इस प्रकार की प्रेरणा उन्हें तनावग्रस्त बनाएगी और वे संस्थान आदि में कोई ‘बड़ा हाथ मारने’ या ‘घोटाले’ करने की सोच से ग्रसित हो सकते हैं, जो आपके परिवार के हित में कतई नहीं होगा ।
पति की व्यस्तता पर उसे प्रताड़ित करना, अपमानित करना ‘बिजी विदाऊट वर्क’ कहकर उनका मजाक उड़ाना ठीक नहीं। “तुमसे तो कुछ होता ही नहीं… । तुम्हें तो दुनियादारी की ए. बी. सी. भी नहीं आती। पता नहीं तुम्हें कब अक्ल आएगी…? घर में बहू आने वाली है, कल को जमाई घर में आएगा…। तुम्हें तो कुछ होश ही नहीं…। पता नहीं दफ्तर में कैसे अफसरी करते हो…?” जैसी बातें पति में हीनता लाती हैं। वह इस प्रकार की जली कटी सुनने की अपेक्षा बाहर रहना ही अधिक पसंद करता है। ऐसे लोगों का घर के प्रति आकर्षण विशेष नहीं रहता और वे अपना अधिकांश समय बाहर ही बिताना उचित समझते हैं। ऐसे पति की व्यस्तता के नाम पर दफ्तर में रम्मी खेल कर अपना समय बिताते हैं या फिर दोस्तों के साथ गप्पें मारकर अपनी व्यस्तता प्रदर्शित करते हैं। आशय यह है कि पति की व्यस्तताओं को समझें, उनमें अपना सहयोग दें। उन्हें कम करने की सोच पालें ।
पति को उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियों का अहसास कराते समय उनकी योग्यता, परख, अनुभवों में विश्वास व्यक्त करें, उन्हें यह अहसास न होने दें कि उनके निर्णय, मत या चयन का कोई मूल्य नहीं। पति की इस व्यस्तता को स्नेहिल व्यवहार से जीतें। उनकी व्यस्तता के प्रति विद्रोह करना, प्रतिशोधी भावनाएं मन में लाना अथवा उन्हें कोसना, अपनी हीनताओं का रोना रोना अथवा पति से अपेक्षाओं का रोना रोना ठीक नहीं।
“मैं भी तो नौकरी करती हूं, घर भी संभालती हूं, बच्चों को भी देखती हूं। तुम क्या करते हो…बस अखबार चाटने के सिवाय कोई और काम भी है तुम्हें…!” जैसी बातें पारिवारिक स्नेह स्रोतों को सोखती हैं। पति-पत्नी में मन-मुटाव बढ़ाती हैं। परस्पर में विश्वास, समझ, समर्पण, सम्मान ऐसे रंग हैं, जो पति की व्यस्तता को अपने रंग दे सकते हैं। पति की व्यस्तता को आकर्षक बना सकते हैं, इसलिए पति की व्यस्तता के संग अपने रंग दें। उन्हें विश्वास में लेकर उनका विश्वास प्राप्त 34
करें। विश्वास की प्रेरणा पाकर जहां आप पति का स्नेह, सहयोग और आत्मीयता पा सकेंगी, वहीं पति की व्यस्तता कम होगी। आखिर पति की व्यस्तता भी तो आपके लिए ही है। बच्चों के वर्तमान और भविष्य के लिए है, इसे कोस कर आप किस मानसिकता का परिचय दे रही हैं? इसलिए इस व्यस्तता को आक्रोश से नहीं विश्वास से कम करें और व्यर्थ के तनाव न बढ़ाएं। इस विषय में निम्नांकित मनोवैज्ञानिक सोच विकसित करें
रविवार या किसी दूसरी छुट्टी को पूरे परिवार के साथ मिल-बैठकर मनाएं ।
- रात का खाना पूरे परिवार के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाएं। बच्चों की समस्याएं मिल-बैठकर निपटाएं।
- घर की सफाई में बराबरी का सहयोग करें।
- मित्र-मंडली को घर पर बुलाने में एक-दूसरे की सहमति अवश्य लें। पारिवारिक समस्याओं के समाधान के लिए प्राथमिकताएं निर्धारित अवश्य करें। • अपने काम स्वयं करने की आदत डालें और एक-दूसरे का सहयोग करें। पति की सार्थक व्यस्तता को दोष नहीं गुण मानें और उसे नकारने की बजाय सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें।
किंतु ध्यान रखें - दोस्तों की भीड़ घर में लाने से परिवार का अनुशासन बिगड़ता है। इस विषय में अपनी सोच को व्यावहारिक बनाएं।
- अनावश्यक विवाद न बढ़ाएं।
- अपने आपको एक-दूसरे का बॉस न समझें ।
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